छिंदवाड़ा में जनता ने दूसरी बार नहीं दिया मौका, MP की इस हाइप्रोफाइल सीट पर इस बार बदलेगा ट्रेंड?
राजेश दीक्षित (छिंदवाड़ा)।
छिंदवाड़ा विधानसभा सीट मध्यप्रदेश की हाईप्रोफाइल सीटों में से एक है। यहां पूर्व सीएम कमलनाथ मैदान में हैं। उनके सामने भाजपा के बंटी विवेक साहू हैं। दोनों ही कैंडिडेट्स ने यहां एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया। हालांकि 2003 के बाद का इतिहास देखें, तो जनता ने इस सीट पर ‘अल्टरनेट फॉर्मूला’ अपनाया। यानी एक बार भाजपा, तो दूसरी बार कांग्रेस को मौका दिया है। दोनों ही उम्मीदवार अपनी-अपनी जीत का दावा कर रहे हैं। अब चूंकि वर्तमान में कमलनाथ विधायक है, तो ये चर्चा भी है कि क्या इस बार ये ट्रेंड बदलेगा? इंतजार 3 दिसंबर का है।
छिंदवाड़ा कमलनाथ का गढ़ है। मध्यप्रदेश की यह एक मात्र ऐसी सीट है, जहां भाजपा का कोई विधायक नहीं है। यानी सभी सातों सीटों पर कांग्रेस काबिज है। 1980 के बाद से कमलनाथ यहां से 9 बार सांसद रह चुके हैं। चूंकि मुख्यमंत्री बनने के लिए विधायक बनना जरूरी है, इसलिए 2019 के उपचुनाव में दीपक सक्सेना ने उनके लिए सीट छोड़ दी। कमलनाथ यहां से चुनाव लड़े। उस वक्त भी बंटी विवेक साहू को उन्होंने 25 हजार वोटों से हराया।
भाजपा को उम्मीद क्यों
भाजपा को 2018 के विधानसभा चुनाव और 2019 के उपचुनाव में 88 हजार से ज्यादा वोट मिले थे। दोनों बार भाजपा हारी जरूर थी, लेकिन वोट बैंक कम नहीं हुआ। इस लिहाज से BJP का इतना वोट बैंक तो फिक्स है। छिंदवाड़ा में 2 लाख 31 हजार वोटर्स हैं। यदि 9 निर्दलीयों को यदि 5 हजार वोट भी मिले, तो यह दोनों दलों का नुकसान होगा। साथ ही, नोटा के वोट भी इसमें शामिल होंगे। खास है कि इसमें भाजपा का पारंपरिक वोट 80 से 90 हजार फिक्स है। वहीं, दो दलों भाजपा को जीत के लिए 30 से 35 हजार वोट की आवश्यकता होगी। उम्मीद है कि लाड़ली बहना योजना, किसान सम्मान निधि कुछ कमाल कर सकती है।
ग्रामीण इलाकों में मजबूत स्थिति
पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ का छिंदवाड़ा से खासा लगाव रहा है। जनता के बीच उनकी छवि है। इस बार भाजपा के विवेक बंटी साहू ने उन्हें पिछली बार से कड़ी टक्कर दी है। पिछले पांच साल से वे लगातार ग्रामीण क्षेत्रों का दौरा करते रहे हैं। हर त्योहारों में ग्रामीणों के बीच पहुंचे हैं। वहीं, लाड़ली बहना और किसान सम्मान जैसी योजनाओं का लाभ मिला है।
कांग्रेस इसलिए कर रही दावा
चुनावी गणितज्ञों की मानें, तो इस बार शहर की जनता ने कांग्रेस को नहीं, बल्कि भावी मुख्यमंत्री को वोट दिया है। इस बार लोग कमलनाथ को मुख्यमंत्री बनना देखना चाहती है, इसलिए बुद्धजीवी वर्ग ने इस बार वोट मुख्यमंत्री बनाने के लिए दिया है। यदि यह आंकलन सटीक बैठा तो कांग्रेस जीत सकती है। वहीं, छिंदवाड़ा मॉडल का भी प्रचार कमलनाथ ने किया है। कमलनाथ ने विकास के नाम पर वोट मांगे थे।
छिंदवाड़ा सीट का राजनीतिक इतिहास
छिंदवाड़ा सीट के राजनीतिक इतिहास की बात करें, तो यह सीट हमेशा से कांग्रेस के कब्जे में नहीं रही। 2013 के चुनाव में बीजेपी ने जीत हासिल की थी। चौधरी चंद्रभान सिंह को यहां जीत मिली थी। 1990 से लेकर अब तक के चुनाव की बात करें, तो तब भी चौधरी चंद्रभान सिंह ने चुनाव जीत कर दीपक सक्सेना को हराया था, लेकिन 1993 में दीपक सक्सेना यह चुनाव जीत गए।
1998 में यह सीट बीजेपी के पास चली गई, जबकि 2003 के चुनाव में बीजेपी के चौधरी चंद्रभान सिंह ने दीपक को फिर से हरा दिया। 2008 में दीपक ने पिछली हार का बदला लिया और चौधरी चंद्रभान सिंह को मात दे दी। 2013 में चौधरी चंद्रभान सिंह फिर से जीते, लेकिन 2018 के चुनाव में हार गए। ऐसे में कहा जा सकता है कि इस सीट पर कांग्रेस और बीजेपी के बीच कड़ी टक्कर रही है।
दोनों पार्टियों ने झोंक दी थी ताकत
छिंदवाड़ा में दोनों ही पार्टियों ने पूरी ताकत झोंक दी थी। दोनों ने ही इसे नाक का सवाल बना लिया। भाजपा के स्टार प्रचारक गृहमंत्री अमित शाह से लेकर उत्तरप्रदेश के सीएम योगी आदित्यनाथ ने यहां सभाएं की। वहीं, कमलनाथ ने भी यहां कई तरह से प्रचार किया।