Sunday, July 27, 2025
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देवउठनी एकादशी से बजेगी शहनाई, वसंत पंचमी-अक्षय तृतीया पर नहीं होंगी शादियां 

भोपाल। आज देवउठनी एकादशी है। इसे देव प्रबोधिनी एकादशी भी कहते हैं। माना जाता है कि चार महीने की योगनिद्रा के बाद भगवान विष्णु इस दिन जागते हैं। इस दिन से ही मांगलिक कार्य भी शुरू हो जाएंगे। शहनाई भी बजने लगेगी। देवउठनी एकादशी को अबूझ मुहूर्त भी मानते हैं, लेकिन इस बार अबूझ मुहूर्त नहीं है। सीजन में मई और जून 2024 में शादियों के मुहूर्त नहीं होंगे। दो सबसे बड़े मुहूर्त अक्षय तृतीया और वसंत पंचमी पर भी शादियां नहीं हो पाएंगी।

ज्योतिष के मुताबिक 23 नवंबर को देव उठने के साथ शादियों का सीजन शुरू होगा। इसी दिन सीजन का पहला मुहूर्त भी है। इसे मिलाकर इस साल दिसंबर महीने तक 12 मुहूर्त होंगे। इनमें नवंबर के 5 और दिसंबर के 7 दिन शुभ हैं।

15 दिसंबर से धनु मास शुरू हो जाएगा। इस कारण अगले साल 15 जनवरी के बाद शादियां शुरू होंगी, जो 20 अप्रैल तक चलेंगी।

मई-जून 2024 में शुक्र ग्रह रहेगा अस्त, इसलिए मुहूर्त नहीं
ज्योतिषाचार्यों के मुताबिक अगले साल यानी 2024 में 29 अप्रैल को शुक्र, सूर्य के नजदीक आ जाएगा, जिससे ये ग्रह 61 दिन तक अस्त रहेगा। शुक्र के अस्त हो जाने से शादियों के लिए मुहूर्त नहीं होते हैं। 28 जून को शुक्र ग्रह के उदय होने के बाद शादियां शुरू होंगी। 15 जुलाई को देवशयन होने तक मुहूर्त रहेंगे।

अक्षय तृतीया और वसंत पंचमी पर भी शादियां नहीं
14 फरवरी 2024 को वसंत पंचमी है। कई जगह इस दिन को शादी के लिए अबूझ मुहूर्त माना जाता है, लेकिन इस बार वसंत पंचमी पर अश्विनी नक्षत्र रहेगा। ज्योतिषियों के मुताबिक इस नक्षत्र में शादी नहीं की जाती है। इस कारण वसंत पंचमी पर विवाह मुहूर्त नहीं रहेगा।

10 मई 2024 को अक्षय तृतीया पर भी बड़ा अबूझ मुहूर्त होता है, लेकिन इस बार अक्षय तृतीया पर शुक्र ग्रह अस्त होने से शादी का मुहूर्त नहीं होगा।

तुलसी विवाह और देव जागने 

कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष के 11वें दिन देव जगाने की परंपरा है। इस दिन पिछले चार महीने से योग निद्रा में सोए भगवान विष्णु को शंख बजाकर जगाया जाता है। दिनभर महापूजा और आरती होती है। शाम को शालिग्राम रूप में भगवान विष्णु और तुलसी रूप में लक्ष्मी जी का विवाह होता है। घर और मंदिरों सजाकर दीपक जलाए जाते हैं। तुलसी-शालिग्राम विवाह नहीं करवा सकते, तो सिर्फ इनकी पूजा भी कर सकते हैं।

त्योहार से जुड़ी कथाएं …

चार महीने बाद लौटते हैं भगवान विष्णु
वामन पुराण के मुताबिक सतयुग में भगवान विष्णु ने वामन अवतार लेकर राजा बलि से तीन कदम जमीन दान में मांगी थी। फिर अपना कद बढ़ाकर दो कदम में पृथ्वी, आकाश और स्वर्ग नाप लिया। तीसरा पैर रखने के लिए जगह नहीं बची, तो राजा बलि ने अपना सिर आगे कर दिया।

सिर पर पैर रखते ही बलि पाताल में चले गए। भगवान ने खुश होकर उन्हें पाताल का राजा बना दिया और वरदान मांगने को कहा।

बलि ने कहा- आप मेरे महल में रहिए। भगवान ने वरदान दे दिया, लेकिन लक्ष्मी जी ने बलि को भाई बनाया। वे विष्णु को वैकुंठ ले गईं। जिस दिन विष्णु-लक्ष्मी वैकुंठ गए, उस दिन ये ही एकादशी थी।

वृंदा के श्राप से विष्णु बने पत्थर के शालिग्राम
वहीं, शिव पुराण के मुताबिक जालंधर नाम के राक्षस ने इंद्र को हराकर तीनों लोक जीत लिए। शिवजी ने उसे देवताओं का राज्य देने को कहा, लेकिन वो नहीं माना।

शिवजी ने उससे युद्ध किया, लेकिन उसके पास पत्नी वृंदा के सतीत्व की ताकत थी। इस कारण जालंधर को हराना मुश्किल था। तब विष्णु जी ने जालंधर का ही रूप लिया। वृंदा के साथ रहकर उसका सतीत्व तोड़ दिया, जिससे जालंधर मर गया।

वृंदा को ये पता चला, तो उन्होंने विष्णुजी को पत्थर बनने का श्राप दिया। लक्ष्मी जी ने भगवान विष्णु को श्राप से छुटाने के लिए वृंदा से विनती की। वृंदा ने विष्णु को हमेशा अपने पास रहने की शर्त पर मुक्ति दी। खुद सती हो गई।

वृंदा की राख से जो पौधा बना, ब्रह्माजी ने उसे तुलसी नाम दिया। विष्णु ने भी तुलसी को हमेशा शालिग्राम रूप में साथ रहने का वरदान दिया। तब से तुलसी-शालिग्राम विवाह की परंपरा है।

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