हाईकोर्ट ने नागरिक सुरक्षा कानून पर कहा- FIR नहीं बनती, तो लिखित कॉपी दे पुलिस, बागेश्वर धाम के धीरेंद्र शास्त्री पर आपत्तिजनक टिप्पणी में फैसला
जबलपुर (वाजिद खान)। मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने बुधवार को नागरिक सुरक्षा संहिता 2023 के तहत पहला फैसला सुनाया है। मामला बागेश्वर धाम के पीठाधीश्वर धीरेंद्र शास्त्री पर अशोभनीय टिप्पणी से जुड़ा है। फैसला बुधवार को हाईकोर्ट जस्टिस विशाल घगट ने सुनाया। वेबसाइट पर फैसला गुरुवार को अपलोड करने के बाद सामने आया।
इस दौरान कोर्ट ने नागरिक सुरक्षा संहिता की व्याख्या भी की। कोर्ट में याचिकाकर्ता की ओर से पैरवी सीनियर एडवोकेट पंकज दुबे ने की।
कोर्ट ने कहा- मामला नहीं बनता तो कारण बताए
‘बागेश्वर धाम के पीठाधीश्वर धीरेंद्र शास्त्री पर अशोभनीय टिप्पणी के मामले में पुलिस केस दर्ज करे। समय सीमा में जांच भी करे। यदि इस मामले में FIR नहीं बनती है, तो पुलिस याचिकाकर्ता को इसकी लिखित कॉपी दे। उसमें बताए कि मामला नहीं बनता, तो क्यों नहीं बनता, ताकि उस आधार पर याचिकाकर्ता आगे की कार्रवाई कर सके।’
High Court said on Civil Defense Act – If FIR is not normal then police should give written copy
7 मई को गोटेगांव थाने में की थी शिकायत
नरसिंहपुर के रहने वाले अमीश तिवारी ने 7 मई 2024 को गोटेगांव थाने में शिकायत दर्ज कराई थी। इसमें बताया था, ‘पंडोखर सरकार के गुरुशरण शर्मा ने कुछ दिन पहले बागेश्वर धाम के पीठाधीश्वर पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री पर अशोभनीय टिप्पणी की थी। इसमें उन्होंने उनके परिवार को नंगा कर देने की धमकी भी दी थी। उनकी यह टिप्पणी सोशल मीडिया पर भी वायरल हुई। इसकी यूट्यूब लिंक भी पुलिस को उपलब्ध करवाई है। इससे भावनाओं को ठेस पहुंची है।’
शिकायत पर पुलिस ने कार्रवाई नहीं की। इसके बाद 21 मई 2024 को नरसिंहपुर एसपी से भी शिकायत कर केस दर्ज कराने की मांग की। यहां से भी संतोषजनक जवाब नहीं मिला।
इसके बाद अमीश तिवारी ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल कर दी। कोर्ट ने सुनवाई के दौरान गोटेगांव थाना और नरसिंहपुर एसपी को कार्रवाई के निर्देश दिए हैं।
High Court said on Civil Defense Act – If FIR is not normal then police should give written copy
भारतीय नागरिक संहिता की धारा 173 के तहत कार्रवाई
अधिवक्ता पंकज दुबे ने कोर्ट में दलील दी कि नए कानून भारतीय नागरिक संहिता की धारा 173 के तहत पुलिस का दायित्व है कि शिकायत मिलने के 14 दिन के भीतर जांच करे। यदि अपराध असंज्ञेय है, तो शिकायतकर्ता को उसकी सूचना दे। ऐसा नहीं होने पर हाई कोर्ट में याचिका दायर की गई। सुनवाई के बाद कोर्ट ने नए कानून की व्याख्या करते हुए यह आदेश जारी किए।
High Court said on Civil Defense Act – If FIR is not normal then police should give written copy