Sunday, July 27, 2025
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आधी रात को सड़कों पर अट्‌टहास, श्रीकृष्ण ने किया कंस का वध; मथुरा के बाद शाजापुर में 270 साल से मनाते हैं उत्सव

शाजापुर। शाजापुर में बुधवार आधी रात भगवान श्रीकृष्ण ने कंस का वध किया। इससे पहले, चल समारोह निकाला गया। श्रीकृष्ण और कंस की सेना के बीच वाक युद्ध भी हुआ। श्रीकृष्ण और कंस के सैनिकों ने एक-दूसरे पर व्यंग्य बाण छोड़े। वध के बाद गवली समाज के लोग कंस के पुतले को लाठी-डंडों से पीटते गए।

कंस वधोत्सव समिति के संयोजक तुलसीराम भावसार का कहना है कि मथुरा के बाद यह आयोजन सिर्फ शाजापुर में होता है। इसकी तैयारी दीपावली के बाद से शुरू की जाती है। पिछले 270 साल से यह परंपरा चल रही है।

राजनीति पर भी व्यंग्य करते हैं कलाकार

बुधवार को शाम होते ही राक्षसों का अट्टहास गूंजने लगा। वहीं, भगवान श्रीकृष्ण की सेना ने शब्दों के बाण चलाए। खास है कि इस युद्ध में खून की नदियां नहीं बहती, बल्कि ठहाके लगते हैं। संवादों में स्थानीय जनप्रतिनिधियों और राजनीति पर भी व्यंग्य होते हैं। 3 दिसंबर को आने वाले विधानसभा चुनाव के परिणामों को भी संवाद में शामिल किया गया। देव और दानवों के इस अनूठे वाक युद्ध को देखने-सुनने के लिए बड़ी संख्या में लोग डटे रहे।

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रात में शाजपुर में चल समारोह निकाला गया।

तुलसीराम भावसार ने बताया कि रात 8.30 बजे बालवीर हनुमान मंदिर से चल समारोह शुरू हुआ। इसमें देवता और दानव का रूप धरे कलाकार रथ पर सवार हुए। चल समारोह सोमवारिया बाजार, मगरिया, काछीवाड़ा, बस स्टैंड, नई सड़क होता हुआ गवली मोहल्ला पहुंचा। यहां वाक युद्ध हुआ।

बाल कृष्ण और मामा कंस के बीच संवाद  
कृष्ण- अरे मामा… ग्वालों के पीछे कितने ही लगा दिया जाए जोर, किंतु तुझसे ना मारा जाएगा ये माखन चोर।

कंस- अरे कन्हैया… अब तक तो सोया था मखमल के गदेलों पर… पल भर में तुझे कर दूंगा मिट्टी के ढेलों पर।

कृष्ण- अरे ओ मामा…हम काल पुरुष हैं, शत्रुंजयी हैं, काल हमारे हाथों में, अंत तेरा आ गया है अब मत उलझा बातों में।

कंस- अरे कान्हा… जब हम हमला करेंगे तो सितारे टूट जाएंगे जमीन पर जलजला होगा… रहेगा नाम सिर्फ ‘चाणूर’ का बाकी सब फना होगा।

कृष्ण- अरे मामाजी… मनमोहन नाम है मेरा, चितचोर भी कहलाता हूं, तलवारों की बातें करते हो, मैं नजर से मार गिराता हूं।

वाक युद्ध के बाद कंस का वध

चल समारोह रात 11.30 बजे के करीब सोमवारिया बाजार स्थित कंस चौराहा पहुंचा। यहां एक बार फिर करीब आधा घंटे तक वाक युद्ध हुआ। इसके बाद कृष्ण का रूप धरे कलाकार ने सिंहासन पर चढ़कर कंस का वध कर पुतले को नीचे गिरा दिया। गवली समाजजन पुतले को घसीटते हुए गवली मोहल्ला तक ले गए। कंस वध से पहले गवली समाज के वरिष्ठजनों का सम्मान किया गया।

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कंस के वध के बाद लोगों ने कंस के पुतले को लाठी-डंडों से पीटा और घसीटकर ले गए।

ऋषभ ने कृष्ण और विलेश ने निभाया कंस का किरदार
भगवान श्रीकृष्ण का किरदार ऋषभ भट्ट और बलराम का किरदार राजकुमार पांडे ने निभाया। इनके साथ ऋषिकेश भट्ट समेत अन्य बाल कलाकार श्रीकृष्ण की मंडली में शामिल रहे। कंस की भूमिका में विलेश व्यास, उनके सेनापति की भूमिका में महेंद्र पंवार और सेना में राजेश जकड़ी, नवीन वशिष्ठ, सुनील बाबा, गौरव दुबे सहित अन्य कलाकार शामिल थे।

ऐसे शुरू हुआ कंस वधोत्सव
तुलसीराम भावसार ने बताया कि गोवर्धन नाथ मंदिर के मुखिया स्व. मोतीराम मेहता ने करीब 270 साल पूर्व मथुरा में कंस वधोत्सव देखा था। उन्होंने लौटकर शाजापुर में वैष्णवजन को इस अनूठे आयोजन के बारे में बताया। इसके बाद से शहर में इस परंपरा की शुरुआत हुई। 100 सालों तक मंदिर में ही यह आयोजन होता रहा। फिर जगह की कमी की वजह से इसे चौराहे पर किया जाने लगा। इस चौराहे का नाम ही कंस चौराहा पड़ गया।

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