मैपकास्ट अफसरों की कारस्तानी, इवेंट कंपनी के साथ मिलकर किया 27 लाख का घोटाला; पढ़िए, कैसे किया फर्जीवाड़ा
भोपाल। भोपाल स्थित मध्य प्रदेश विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद (मैपकास्ट) के अफसरों की कारस्तानी सामने आई है। अफसरों ने इवेंट कंपनी के साथ मिलकर 27 लाख का घोटाला किया। मामला सामने आने पर लोकायुक्त में शिकायत कर दी। अब अधिकारी जवाब देने में आनाकानी कर रहे हैं।
मामला प्रधानंत्री नरेंद्र मोदी के ड्रीम प्रोजेक्ट में ‘विज्ञान सर्वत्र पूज्यंते’ से जुड़ा है। इसके तहत 2022 में मध्य प्रदेश काउंसिल आफ साइंस एंड टेक्नोलाजी (मैपकास्ट) को विभिन्न कार्यक्रमों की जिम्मेदारी दी गई थी। आयोजन के लिए नियुक्त अधिकारियों ने पड़ताल की, तो मामले का खुलासा हो गया। पता चला कि टेंडर प्रक्रिया से लेकर आयोजन तक हर चरण में अनियमितता की गई है। 27 लाख रुपए का बिल बना दिया गया।
बता दें कि प्रदेश के कई शहरों ‘विज्ञान सर्वत्र पूज्यंते’ कार्यक्रम आयोजित किया गया था। प्रदेश में भोपाल, ग्वालियर और जबलपुर में 22 फरवरी से 28 फरवरी 2022 के बीच आयोजन हुए थे। इसमें व्याख्यान, रेडियो शो, फिल्म प्रदर्शन, प्रदर्शनी का आयोजन किया गया।
27 lakh Rupees Scam Sas Done In Collaboration With The Event Company In Mapcast
फर्म को किया 11 लाख का भुगतान
अनियमितता सामने आने के बाद अफसराें ने 27 लाख रुपए के बिल में 16 लाख काट दिए। इसके बावजूद फर्म को 11 लाख का पेमेंट कर दिया गया। बताया जाता है कि सबसे पहले निविदा की खानापूर्ति की गई। बैक डेट में टेंडर संबंधी प्रक्रिया की गई, लेकिन क्या खरीदी की गई, इसका सत्यापन नहीं किया गया।
हाईकोर्ट में भी याचिका लगाई
तीसरी गड़बड़ी- फरवरी 2022 में पांच लाख रुपए तक की सीमित निविदा में 27 लाख का काम दिखाया गया। संस्थान के ही वरिष्ठ प्रधान विज्ञानी डॉ. नरेंद्र शिवहरे ने मामले की शिकायत लोकायुक्त की। कार्रवाई के लिए हाई कोर्ट में भी याचिका लगाई गई। आरोप लगाया कि गड़बड़ी संस्थान के महानिदेशक (डीजी) डॉ. अनिल कोठारी की इशारे पर की गई है।
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डॉ. शिवहरे ने शिकायत में कहा कि डीजी ने कलीग्स पर दबाव बनाकर बैक डेट में कागजात तैयार कराए हैं। संस्थान के चीफ साइंटिस्ट डॉ. राकेश आर्य ने हाई कोर्ट में शपथ पत्र दिया। इसमें कहा कि डीजी ने दबाव बनाकर बैक डेट में निविदा पर सिग्नेचर करवाए थे।
आराेप- पांच गुना महंगी दर पर कराया काम
आरोप है कि निविदा शर्तों में कि 4 निविदाकार एजेंसियों ने निवदाएं प्रस्तुत की, पर नस्ती में निविदा में कहीं भी उल्लेख नहीं है कि निविदा किस समाचार पत्र में पब्लिश हुईं। आशंका इस बात की भी है कि निविदा प्रकाशन के लिए नोटशीट जारी ही नहीं हुई। कार्यादेश और भुगतान किसी और कंपनी को किया गया, जबकि काम किसी और ने किया। बाजार से दो से पांच गुना तक महंगी दरों पर काम कराया गया।
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